देश में हमें अक्सर यह देखने और सुनने को मिलता है गर्मी के मौसम या किसी एनी कारणों से पहाड़ी इलाक़ों के जंगल में आग लग गई। इसे बुझाने में बहुत प्रयास किया जाता है। लेकिन अब उत्तराखंड के जंगलों में हर साल गर्मी आते ही लगने वाली भीषण आग बीते दिनों की बात हो सकती है। नैनीताल वन प्रभाग ने इस समस्या से निपटने और साथ ही स्थानीय लोगों के लिए आय के नए स्रोत खोलने की दिशा में एक अनोखी और दूरगामी पहल की है। पेड़ों से गिरने वाली चीड़ की सूखी पत्तियां, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘पिरुल’ कहा जाता है और जो अक्सर जंगल की आग का प्रमुख कारण बनती हैं, अब उनसे बिजली और कोयला बनाया जाएगा।
आग बुझाने का स्थायी समाधान और ग्रामीण सशक्तिकरण
नैनीताल वन प्रभाग ने इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए स्थानीय लघु एवं मध्यम उद्यमियों के साथ एक समझौता ज्ञापन (M.O.U.) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह करार जंगलों से पिरुल को हटाने और उसका रचनात्मक उपयोग करने की एक ठोस रणनीति का हिस्सा है।
- पर्यावरण संरक्षण: हर साल जंगलों की आग से पर्यावरण और वन्यजीवों को भारी नुकसान होता है। पिरुल की सफाई से आग लगने की घटनाओं में भारी कमी आएगी, जिससे देवभूमि के वन सुरक्षित रहेंगे।
- बिजली और कोयला उत्पादन: इस पहल से पिरुल का उपयोग करके स्वच्छ ऊर्जा (बिजली) और पर्यावरण-अनुकूल कोयले का उत्पादन किया जाएगा, जो राज्य की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में भी सहायक होगा।
- रोजगार के अवसर: यह योजना स्थानीय लोगों, विशेषकर महिला समूहों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
उत्तरकाशी के उद्यमी महादेव गंगराड़ी का सहयोग
इस पहल में उत्तरकाशी जिले में पहले से ही पिरुल से विद्युत उत्पादन कर रहे उद्यमी महादेव गंगराड़ी के संयन्त्र के साथ भी एम.ओ.यू. साइन किया गया है। गंगराड़ी ने बताया कि इस समझौते के तहत वे नैनीताल वन प्रभाग की प्रत्येक रेंज में विद्युत उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करेंगे। इससे न केवल जंगलों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को स्थायी रोजगार भी मिलेगा।
महिला समूहों को मिलेगा बेहतर भुगतान, बढ़ेगी आर्थिक ताकत
इस योजना का एक और महत्वपूर्ण पहलू है पिरुल एकत्र करने वाले महिला समूहों का आर्थिक सशक्तिकरण। पहले इन समूहों को पिरुल एकत्र करने के लिए 3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से भुगतान किया जाता था, जिसे अब बढ़ाकर 10 रुपये प्रति किलोग्राम कर दिया गया है।
- यह निर्णय महिला समूहों की आय में कई गुना वृद्धि करेगा, जिससे वे आर्थिक रूप से अधिक मजबूत और आत्मनिर्भर बनेंगी।
- जंगलों से पिरुल को हटाकर आग के खतरे को कम करने के साथ-साथ यह कदम सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
नैनीताल वन प्रभाग की यह अनूठी और दूरदर्शी पहल उत्तराखंड के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है, जो पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा उत्पादन और ग्रामीण विकास को एक साथ साध रही है।