जीव-जंतु कल्याण एवं कृषि शोध संस्थान (AWARI) के अध्यक्ष श्री भारत सिंह राजपुरोहित के नेतृत्व में चल रही राष्ट्रव्यापी ‘गौ राष्ट्र यात्रा’ ने राजस्थान की राजधानी जयपुर में अपना महत्वपूर्ण पड़ाव डाला। इस दौरान, यात्रा को पूज्य संतों का आशीर्वाद मिला, और गौ-सेवकों के साथ सीधा संवाद स्थापित कर गौ-संरक्षण की चुनौतियों और समाधानों पर गहन चर्चा हुई।
संतों का आशीर्वाद और गौ-सेवा केंद्रों का दौरा
जयपुर पहुँचने पर, ‘गौ राष्ट्र यात्रा’ को निवाई में श्रद्धेय संत श्री प्रकाश दास जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जिसने यात्रा को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान की। सुबह की शुरुआत श्री विष्णु जी अग्रवाल के धूपबत्ती एवं पूजन सामग्री बनाने वाले केंद्र के दौरे से हुई, जहाँ गौ-आधारित उत्पादों की संभावनाओं को समझा गया। इसके बाद, यात्रा दल समाज सेवी और परम गोभक्त श्री मुकेश जी कुमावत की गिर गौशाला पहुँचा, जहाँ गोमाता के दर्शन कर उनके संरक्षण के प्रयासों को देखा गया।
जमीनी संवाद और आध्यात्मिक संध्या
जयपुर में यात्रा टीम ने नंदी गौशाला नाथुका फाउंडेशन, श्री घुश्मेश्वर मंदिर ट्रस्ट और गौ सेवा दल शिवाड़ का भी दौरा किया। यहाँ श्री राजपुरोहित और उनकी टीम ने गौ सेवकों, गौ पालकों और गौ प्रेमियों से सीधा संवाद स्थापित किया, उनकी समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुना, और गौवंश के कल्याण तथा संरक्षण के लिए मिले महत्वपूर्ण सुझावों पर विचार-विमर्श किया। इन चर्चाओं में गौशालाओं के वित्तीय प्रबंधन, चारे की उपलब्धता, पशु स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और देसी गौवंश के उत्पादों के विपणन जैसी अहम बातें शामिल थीं। मुकेश जी, हिमांशु जी, सुरेन्द्र जी, जगदीश जी, खेमचंद जी, प्रेम जी, हर्षित जी, बाबूलाल जी और रामकल्याण जी सहित अनेक प्रमुख गौ-सेवी इस दौरान उपस्थित रहे, जिन्होंने यात्रा के उद्देश्यों का समर्थन किया।
दोपहर के बाद, यात्रा दल जयपुर से लगभग 120 किमी दूर सिवाड़, सवाईमाधोपुर की ओर बढ़ा। शाम को, टीम ने एक बार फिर श्री प्रकाश दास जी महाराज की भजन संध्या में भाग लिया, जिससे यात्रा को एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव मिला और गौ-संरक्षण के प्रति समर्पण और भी प्रबल हुआ।
‘संवाद से समाधान’: आत्मनिर्भर भारत में गौवंश की भूमिका
श्री भारत सिंह राजपुरोहित ने इस बात पर जोर दिया कि ‘गौ राष्ट्र यात्रा’ का मुख्य उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना नहीं है, बल्कि ज़मीनी स्तर पर कार्यरत गौ सेवकों से सीधे जुड़ना है, ताकि उनकी वास्तविक चुनौतियों को समझा जा सके और उनके अनुभवों व सुझावों को राष्ट्रीय स्तर पर गौ-नीति निर्माण में शामिल किया जा सके। यह यात्रा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में गौमाता की केंद्रीय भूमिका को स्थापित करने के अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर है, जहाँ गौवंश की समृद्धि सीधे तौर पर देश की समग्र खुशहाली से जुड़ी हुई है।