विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जब पूरी दुनिया पर्यावरण बचाने की बात कर रही है, इसी क्रम में भारत के गांवों में भी पर्यावरण को बचाने और फसल अवशेषों से कमाई करने की दिशा में क्रांतिकारी काम हो रहे हैं। भारत में कृषि अवशेषों का उपयोग बायोफ्यूल, बायोमास पेलेट्स, और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग में हो रहा है। गन्ने के अवशेष (बगास) और अन्य फसल कचरे से बने ईंधन और पैकेजिंग उत्पाद पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्टार्टअप्स और किसानों के लिए कमाई का नया रास्ता खोल रहे हैं। यह पहल प्राकृतिक ईंधन की बचत कर रही है और कार्बन उत्सर्जन को कम करके पर्यावरण को स्वच्छ बना रही है। अब एग्रीकल्चर वेस्ट किसानों और स्टार्टअप्स के लिए कमाई और पर्यावरण बचाव का मजबूत ज़रिया बन गया है।
पराली और फसल अवशेष से बन रहा है ईको-फ्रेंडली फ्यूल
उत्तर भारत में गेहूं, धान और गन्ने की फसल कटने के बाद खेतों में जो अवशेष बचते हैं, उनका अब उपयोग बायोफ्यूल और बायो-पेलेट्स बनाने में हो रहा है। ये ईंधन बॉयलर, भट्ठी, और औद्योगिक मशीनों में कोयले और डीज़ल की जगह काम आते हैं — और वो भी कम खर्च में और बिना धुएं के।
गन्ने की खोई से बन रहे पैकेजिंग प्रोडक्ट
गन्ने, गेहूं और धान के रेशों से अब बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट्स बन रहे हैं — जैसे प्लेटें, कप, ट्रे और गत्ते। ये न केवल प्लास्टिक और थर्माकोल का इको-फ्रेंडली विकल्प बन चुके हैं, बल्कि अब बड़े रेस्टोरेंट, कैफे और ई-कॉमर्स कंपनियां इन्हीं का इस्तेमाल कर रही हैं।
किसानों के लिए बना आय का साधन
जहां पहले किसान पराली जलाने पर जुर्माना भरते थे, अब वे उसी को ₹500 से ₹2000 प्रति टन में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं। कई कंपनियां गांवों में कलेक्शन सेंटर बनाकर किसानों से सीधा फसल अवशेष खरीद रही हैं।
स्टार्टअप्स के लिए भी सुनहरा अवसर
पर्यावरण दिवस पर देशभर के युवा इस सेक्टर में स्टार्टअप्स की शुरुआत कर रहे हैं — कोई बायोफ्यूल यूनिट चला रहा है, तो कोई बायो पैकेजिंग का उत्पादन कर रहा है। ये स्टार्टअप अब ग्रामीण भारत में रोजगार का नया आधार बनते जा रहे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक अहम संदेश
- कार्बन उत्सर्जन में कमी
- फसल अवशेष जलाने की घटनाएं घटीं
- ग्रीन एनर्जी का विकल्प मिला
- कचरे से कमाई का रास्ता खुला
सरकारी समर्थन भी मिल रहा
नीति आयोग, पर्यावरण मंत्रालय और कृषि विभाग ऐसे प्रोजेक्ट्स को सब्सिडी, ट्रेनिंग और स्कीम्स के माध्यम से बढ़ावा दे रहे हैं। कई राज्यों में ग्राम पंचायत स्तर पर बायोफ्यूल संयंत्र लगाने की योजना बनाई जा रही है।