एक तरफ हरियाणा समेत देशभर के किसान धान की बंपर फसल की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक नए वायरस ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। इस वायरस का नाम है सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSDV), जिसने 92,000 एकड़ से अधिक धान की फसल को प्रभावित कर दिया है। हरियाणा सरकार और कृषि वैज्ञानिक भी इस खतरे से निपटने के लिए अलर्ट मोड पर आ गए हैं।
क्या है यह ‘चाइनीज’ वायरस?
यह वायरस, जिसे पहली बार 2001 में चीन में पाया गया था, धान के पौधों को बौना बना देता है। इसी वजह से इसे ‘ड्वार्फ वायरस’ भी कहते हैं। यह पौधों को काला कर देता है, उनकी वृद्धि को रोक देता है, और अंततः पैदावार को बुरी तरह प्रभावित करता है। इसका फैलाव व्हाइट-बैक्ड प्लांट हॉपर नामक एक छोटे कीट के माध्यम से होता है, जो संक्रमित पौधों से रस चूसकर स्वस्थ पौधों में वायरस फैलाता है।
यह वायरस सबसे ज्यादा तब नुकसान पहुंचाता है जब धान की फसल शुरुआती चरण में होती है। गंभीर रूप से संक्रमित पौधे मुरझा जाते हैं और उनका निचला हिस्सा काला पड़ जाता है। पौधे के तने पर काली या सफेद धारियां भी दिखाई देती हैं, जो इस संक्रमण की पहचान हैं।
हरियाणा में स्थिति और सरकार का रुख
हरियाणा, जो अपने बासमती चावल के लिए दुनिया भर में मशहूर है, इस वायरस से बुरी तरह प्रभावित है। हाल ही में, हरियाणा विधानसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, जहां कृषि मंत्री ने बताया कि राज्य में लगाई गई 40 लाख एकड़ धान की फसल में से लगभग 92,000 एकड़ पर इस वायरस का असर देखा गया है।
सरकार ने किसानों को सलाह दी है कि वे कृषि विशेषज्ञों और सरकारी निर्देशों का पालन करें ताकि इस तरह की बीमारियों से बचा जा सके।
बचाव के उपाय और प्रभावित किस्में
कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सलाह जारी की हैं:
- कीटनाशकों का छिड़काव: यदि खेत में व्हाइट-बैक्ड प्लांट हॉपर दिखाई दें, तो पैक्सोलैम 10 एससी, ओशीन टोकेन 20एसजी, या चेस 50 डब्ल्यू जी जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें। बेहतर नतीजों के लिए, दवा का छिड़काव पौधे के निचले हिस्से पर करना चाहिए ताकि वायरस को फैलने का मौका न मिले।
- प्रभावित किस्में: इस वायरस का असर बासमती (पूसा-1962, 1718, 1121, 1509, 1847) और गैर-बासमती (PR-114, 130, 131, 136) जैसी कई किस्मों पर देखा गया है, जिससे पैदावार में भारी कमी आई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस वायरस का प्रकोप शुरुआती दिनों में सबसे ज्यादा होता है और अगर उस समय फसल बच जाती है तो बाद में इसका खतरा कम हो जाता है। यह वायरस पहली बार भारत में तीन साल पहले पाया गया था, और अब यह किसानों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है।





