रबी सीजन की सबसे महत्वपूर्ण फसल गेहूं की बुआई का समय नज़दीक आ गया है। इस दौरान किसानों को अधिकतम उपज प्राप्त हो और लागत भी नियंत्रित रहे, इसके लिए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), करनाल ने देशभर के किसानों के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। संस्थान ने किसानों को सलाह दी है कि वे इन वैज्ञानिक सलाहों को अपनाकर गेहूं की बेहतर पैदावार सुनिश्चित करें।
1. सही समय पर बुआई है ज़रूरी
संस्थान के अनुसार, वर्तमान का तापमान गेहूं की बुआई के लिए एकदम उपयुक्त है। बुआई के समय का सही चुनाव उपज को सीधे प्रभावित करता है:
- अगेती बुआई: नवंबर के पहले सप्ताह तक पूरी कर लेनी चाहिए।
- सामान्य बुआई: 20 नवंबर तक कर लेनी चाहिए।
- चेतावनी: बुआई में देरी करने से उपज में गिरावट आती है और बाद में पड़ने वाली गर्मी का फसल पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
2. क्षेत्र के अनुसार किस्मों का चयन
किसानों को सलाह दी गई है कि वे अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार ही किस्मों का चयन करें, जो अधिकतम उपज दे सकती हैं:
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कृषि जलवायु क्षेत्र |
अनुशंसित प्रमुख किस्में |
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उत्तर पश्चिम (पंजाब, हरियाणा, पश्चिम यूपी, राजस्थान) |
DBW 187, DBW 222, HD 3046, WH 1105 |
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पूर्वी क्षेत्र (पूर्वी यूपी, बिहार, बंगाल, झारखंड) |
PBW 826, DBW 252, K 1006, DBW 386 |
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केंद्रीय क्षेत्र (मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान) |
HI 1636, HI 8759, JW 366, DBW 303 |
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दक्षिणी क्षेत्र (महाराष्ट्र, कर्नाटक) |
DBW 168, MACS 6478, PBW 891, UAS 304 |
3. बीजोपचार और बुआई दर
- बीज का स्रोत: किसान केवल विश्वसनीय स्रोत से ही बीज खरीदें।
- बीजोपचार (Seed Treatment): बीज जनित रोगों (जैसे लूज स्मट, करनाल बंट) से बचाव के लिए बुआई से पहले बीज का उपचार (जैसे कॉर्बोक्सिन 75 WP या कार्बेंडाजिम 50 WP) अवश्य करें।
- बुआई दर: समय पर बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की दर उचित मानी गई है।
4. पोषक तत्व प्रबंधन (खाद की सटीक मात्रा)
संस्थान ने सलाह दी है कि उर्वरक की आवश्यकता क्षेत्र के अनुसार बदलती है, इसलिए मृदा परीक्षण कराना सर्वोत्तम है।
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क्षेत्र |
उर्वरक अनुपात (N:P:K किग्रा/हेक्टेयर) |
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NWPZ (उत्तर पश्चिम) & NEPZ (उत्तर पूर्व) |
150:60:40 |
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CZ (केंद्रीय) & PZ (प्रायद्वीपीय) |
120:60:40 |
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सीमित सिंचाई क्षेत्र |
90:60:40 |
उपयोग का तरीका: नाइट्रोजन (N) की एक-तिहाई मात्रा बुआई के समय दें, जबकि शेष दो बराबर भाग पहली और दूसरी सिंचाई में दें। फास्फोरस (P) और पोटाश (K) की पूरी मात्रा बुआई के समय ही डालनी चाहिए।
5. खेती की तकनीक और पर्यावरण संरक्षण
- पराली प्रबंधन: संस्थान ने सख्त अपील की है कि किसान पराली न जलाएँ, क्योंकि यह पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाता है और मिट्टी की गुणवत्ता खराब करता है।
- बुआई तकनीक: धान की कटाई वाले खेतों में हैप्पी सीडर या स्मार्ट सीडर का उपयोग करके सीधे गेहूं की बुआई करने की सलाह दी गई है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
खरपतवार नियंत्रण: संस्थान ने बुआई के 0-3 दिन बाद उपयुक्त शाकनाशियों (जैसे पाइरोक्सासल्फोन 85 WG) का छिड़काव करने की भी सलाह दी है।
IIWBR ने किसानों से अपील की है कि वे इन वैज्ञानिक गाइडलाइनों का पालन करें ताकि वे अधिक उपज, कम लागत और बेहतर पर्यावरण संतुलन के साथ गेहूं की फसल ले सकें।





