विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिहार में पूर्वी चंपारण के पीपराकोठी में स्थानीय किसानों से भेंट की। इस दौरान उन्होंने यहां किसान आनंद प्रसाद से बातचीत की जिसमें इस किसान ने कृषि मंत्री को बिहार का मर्चा चावल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। इस चावल की सुगंध न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी लोगों को लुभा रही है, अब किसानों के लिए समृद्धि का नया प्रतीक बन रहा है।
मर्चा चावल की विशेषता
मर्चा चावल, जिसे अपने अनूठे स्वाद और सुगंध के लिए जीआई टैग प्राप्त है, की कीमत बाजार में 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच रही है। इससे बने चिड़वा और पोहा की मांग न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है। किसानों का कहना है कि यदि इसकी खेती के लिए उन्नत बीज और तकनीक उपलब्ध हो, तो उनकी आय में जबरदस्त इजाफा हो सकता है।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसानों की इस मांग को गंभीरता से लेते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों को तत्काल निर्देश दिए कि मर्चा चावल की उत्पादकता बढ़ाने और इसके लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज विकसित करने पर शोध शुरू किया जाए। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य किसानों की जरूरतों के अनुरूप शोध और नवाचार को बढ़ावा देना है, ताकि उनकी मेहनत का पूरा फल मिले।”
स्थानीय किसान ने बताया, “मर्चा चावल हमारी पहचान है। इसकी खेती हमारे पूर्वज करते आए हैं और हम भी कर रहे हैं। अगर इसके बीज और खेती की तकनीक में सुधार हो, तो हमारी आय दोगुनी हो सकती है। विदेशों से आने वाली मांग को देखते हुए हमें और संसाधन चाहिए।”
ICAR के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में काम शुरू करने का भरोसा दिलाया है। उनका कहना है कि मर्चा चावल की विशेषताओं को बनाए रखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिट्टी, जलवायु और स्थानीय परिस्थितियों का गहन अध्ययन किया जाएगा।
बिहार के इस सुगंधित चावल की कहानी अब केवल खेतों तक सीमित नहीं है। यह अब वैश्विक बाजारों में अपनी जगह बना रहा है और किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि का नया रास्ता खोल रहा है। सरकार और वैज्ञानिकों के इस संयुक्त प्रयास से मर्चा चावल न केवल बिहार की शान बढ़ाएगा, बल्कि देश के कृषि निर्यात को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
मर्चा चावल की विशेषताएँ:
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- उत्पत्ति: मुख्य रूप से बिहार के पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, मिथिलांचल, और कोसी क्षेत्र में उगाया जाता है।
- सुगंध और स्वाद: इसकी अनोखी सुगंध और हल्का स्वाद इसे बासमती की तरह खास बनाता है। यह चिड़वा, पोहा, और खीर जैसे व्यंजनों के लिए आदर्श है।
- जीआई टैग: 4 अप्रैल 2023 को मार्च चावल को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला, जिसने इसकी क्षेत्रीय विशिष्टता को मान्यता दी।
- बाजार मूल्य: बाजार में इसकी कीमत 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक है, जो इसे उच्च मूल्य वाली फसल बनाता है।
- बाजार और मांग:
- मर्चा चावल की मांग न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों में भी तेजी से बढ़ रही है।
- इससे बने चिड़वा और पोहा की लोकप्रियता ने इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है।
- आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व:
- मर्चा चावल बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है और निर्यात के जरिए किसानों की आय बढ़ा रहा है।
- यह बिहार की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, जो स्थानीय उत्सवों और पारंपरिक व्यंजनों में विशेष स्थान रखता है।
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