अगली बार जब आप भिंडी के डंठल को कचरे में फेंकने जाएं, तो ज़रा रुक जाना! क्योंकि अब ये सिर्फ बेकार का कचरा नहीं, बल्कि भविष्य के फैशन का नया धागा बन रहे हैं। जी हाँ, आपने बिल्कुल सही पढ़ा । दरअसल एक प्रगतिशील भारतीय किसान ने यह कमाल कर दिखाया है, और अब भिंडी के बचे हुए डंठल से कपड़ा तैयार हो रहा है, जो न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि खेती से होने वाली आय को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है। यह अनोखा आविष्कार सिर्फ एक प्रयोग नहीं, बल्कि कचरे से कंचन बनाने की एक शानदार मिसाल है, जिसके बारे में जानकर आप सचमुच चौंक जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में सिवनी गांव के इनोवेटिव किसान रामाधार देवांगन ने इसे कर दिखाया है — उन्होंने भिंडी के डंठल से रेशा निकालकर कपड़ा तैयार करने की अनोखी पहल शुरू की है। यह कपड़ा अब एक विशेष जैकेट के रूप में बदला जाएगा, जिसे वे 19 जून को रांची में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह को भेंट करेंगे।
नवाचार की राह पर कदम-कदम सफलता
रामाधार का यह प्रयास अब अपने आखिरी चरण में है। अगले कुछ दिनों में भिंडी के रेशे से बना कपड़ा पूरी तरह तैयार हो जाएगा, जिसके बाद उससे एक खास जैकेट बनाई जाएगी। इस कार्य को लेकर कपड़ा मंत्रालय ने उन्हें रांची में होने वाले कार्यक्रम में विशेष आमंत्रण दिया है। रामाधार इन दिनों अपने इस नवाचार को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं।
किसान स्कूल से मिला सहयोग, पहले भी हुए हैं नवाचार
रामाधार, वरिष्ठ पत्रकार कुंजबिहारी साहू के मार्गदर्शन में संचालित किसान स्कूल बहेराडीह से जुड़े हुए हैं। संस्थान के संचालक दीनदयाल यादव ने उनके कार्य को सराहते हुए कहा कि ये नवाचार पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दे सकते हैं।
यह पहली बार नहीं है जब किसान स्कूल बहेराडीह से जुड़े किसी कृषक ने ऐसा करिश्मा किया हो। वर्ष 2018 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जांजगीर पहुंचे थे, तब इसी संस्था द्वारा केले और अलसी के रेशों से बनी जैकेट व शॉल उन्हें भेंट की गई थी। साथ ही कई जनप्रतिनिधियों को भी इस प्रकार के वस्त्र उपहार स्वरूप दिए जा चुके हैं।
प्राकृतिक रेशों से फैशन की दुनिया में क्रांति की दस्तक
रामाधार का यह प्रयास केवल एक प्रयोग नहीं, बल्कि एक ऐसी स्थायी तकनीक का संकेत है, जिससे कृषि अपशिष्ट से मूल्यवर्धन कर किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। पर्यावरण के अनुकूल इस नवाचार में स्थानीय संसाधनों का उपयोग, कौशल विकास और कृषि-आधारित उद्यमिता की संभावनाएं झलकती हैं।