उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वाकांक्षी कदम उठाने जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘ग्राम-ऊर्जा मॉडल’ के अंतर्गत, प्रदेश भर के गाँवों में घरेलू बायोगैस यूनिटों की स्थापना शुरू की जा रही है। इस अभिनव योजना का उद्देश्य न केवल ग्रामीणों की रसोई के खर्च को कम करना है, बल्कि जैविक खाद के उत्पादन को बढ़ावा देना और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है। यह पहल किसानों और ग्रामीणों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने का सामर्थ्य रखती है।
पहले चरण में चार जिलों का चयन, लाखों घरों तक विस्तार की योजना
इस दूरदर्शी योजना के पहले चरण के लिए अयोध्या, वाराणसी, गोरखपुर और गोंडा जैसे प्रमुख जिलों का चयन किया गया है। इन चारों जिलों में कुल 2,250 घरेलू बायोगैस यूनिटें स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कार्य करेगा, और इन शुरुआती जिलों में प्राप्त सफलता के आधार पर, अगले चार वर्षों में इस योजना को प्रदेश के लगभग 2.5 लाख घरों तक विस्तारित करने की व्यापक योजना है। यह विस्तार ग्रामीण ऊर्जा और कृषि परिदृश्य में एक क्रांति लाने का वादा करता है।
न्यूनतम अंशदान, अधिकतम लाभ: सरकार और कार्बन क्रेडिट का सहयोग
यह योजना वित्तीय रूप से भी ग्रामीणों के लिए अत्यधिक सुविधाजनक बनाई गई है। प्रत्येक बायोगैस संयंत्र की कुल लागत ₹39,300 निर्धारित की गई है, जिसमें से किसानों को अपनी जेब से केवल ₹3,990 (कुल लागत का लगभग 10 प्रतिशत) का ही अंशदान देना होगा। शेष राशि का वहन सरकार की वित्तीय सहायता और ‘कार्बन क्रेडिट मॉडल’ के माध्यम से किया जाएगा, जिससे यह परियोजना ग्रामीणों के लिए सुलभ हो सके। इस महत्वपूर्ण पहल को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग से भी औपचारिक स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है, जो इसके पर्यावरणीय महत्व को रेखांकित करती है।
एलपीजी की खपत में भारी कमी और जैविक खाद का उत्पादन
उत्तर प्रदेश गो सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता के अनुसार, यह बायोगैस पहल ग्रामीणों के जीवन को सरल बनाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगी। उन्होंने बताया कि इस योजना के सफल क्रियान्वयन से ग्रामीण रसोईघरों में एलपीजी (तरलीकृत पेट्रोलियम गैस) की खपत में लगभग 70 प्रतिशत तक की भारी कमी आएगी, जिससे परिवारों के घरेलू खर्चों में उल्लेखनीय बचत होगी।
गो सेवा आयोग के ओएसडी डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने इस योजना के एक और बड़े लाभ पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ये घरेलू बायोगैस यूनिटें न केवल खाना पकाने के लिए स्वच्छ गैस प्रदान करेंगी, बल्कि उनसे निकलने वाली ‘स्लरी’ (अपशिष्ट) से उच्च गुणवत्ता वाली जैविक/प्राकृतिक खाद भी तैयार होगी। यह जैविक खाद खेती के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगी और रासायनिक उर्वरकों पर किसानों की निर्भरता को कम करेगी, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरेगा। भविष्य में, इस गैस का उपयोग वाहनों के ईंधन के रूप में भी किया जा सकेगा, जो ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
ग्रामीणांचल में स्वरोजगार और पशुशाला निर्माण को बढ़ावा
इस दूरगामी योजना के तहत, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से गौशालाओं का भी निर्माण किया जाएगा, जिससे किसानों और पशुपालकों को अतिरिक्त लाभ मिलेगा। प्रथम चरण में, 43 गौशालाओं में बायोगैस और जैविक/प्राकृतिक खाद संयंत्र स्थापित कर उन्हें चालू किया जाएगा। अनुमान है कि प्रत्येक गौशाला से प्रति माह लगभग 50 क्विंटल स्लरी तैयार होगी, जिसका उपयोग आसपास के किसान अपनी खेती में कर सकेंगे। यह संपूर्ण मॉडल स्थानीय युवाओं के लिए स्वरोजगार और नए रोजगार के अवसर भी सृजित करेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा।