उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज एक अप्रत्याशित और हृदयस्पर्शी रूप में सामने आए, जिसने राज्यभर के किसानों और आम जनता को भावुक कर दिया। खटीमा के अपने पैतृक नगरा तराई क्षेत्र में, मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने खेत की उपजाऊ मिट्टी में उतरकर धान के छोटे-छोटे पौधों की रोपाई की। उनका यह ज़मीन से जुड़ाव और किसानों के अथक परिश्रम के प्रति सम्मान व्यक्त करने का तरीका न केवल प्रेरणादायक था, बल्कि यह राज्य की समृद्ध कृषि संस्कृति और परंपराओं से उनके गहरे भावनात्मक रिश्ते को भी दर्शाता है। यह अनूठा दृश्य कृषि क्षेत्र में मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता और किसानों के प्रति उनके व्यक्तिगत सम्मान को एक नई ऊँचाई पर ले गया।
मुख्यमंत्री का भावनात्मक जुड़ाव: खेत खलिहान से जुड़ी पुरानी यादें और अन्नदाता का सम्मान
सुबह-सुबह जब मुख्यमंत्री धामी ने पारंपरिक वेशभूषा में खेत की कीचड़ भरी मिट्टी में कदम रखा और स्वयं धान की रोपाई शुरू की, तो यह पल एक सशक्त संदेश बन गया। यह मात्र एक सांकेतिक कार्य नहीं था, बल्कि यह दर्शाता है कि राज्य का मुखिया स्वयं को अपनी जड़ों से कितना गहराई से जुड़ा हुआ महसूस करता है। इस दौरान मुख्यमंत्री ने भावुक होकर कहा कि खेत में उतरते ही उन्हें अपने पुराने दिन याद आ गए, जब वे भी इसी तरह मिट्टी और फ़सलों के बीच समय बिताया करते थे।
उन्होंने भारत के किसानों को देश की अर्थव्यवस्था की सच्ची रीढ़ बताया, जिनके त्याग और अथक समर्पण के बिना देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि असंभव है। मुख्यमंत्री ने दृढ़ता से कहा, “किसान सिर्फ़ अन्नदाता नहीं हैं, वे हमारी संस्कृति और परंपराओं के सच्चे संवाहक भी हैं।” उन्होंने किसानों के साथ खेत में काम करने को अपने लिए एक गौरवपूर्ण अनुभव बताया। उनका यह व्यक्तिगत जुड़ाव किसानों के मनोबल को बढ़ाने और उन्हें यह विश्वास दिलाने में सहायक है कि राज्य सरकार और उसका नेतृत्व उनके परिश्रम को भली-भांति समझते और उसका सम्मान करते हैं। यह किसानों को सशक्त करने और उन्हें मुख्यधारा में लाने का एक प्रभावी तरीका है।
‘हुड़किया बौल’ की गूँज: उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और प्रकृति से संवाद
धान रोपाई के इस शुभ अवसर पर, मुख्यमंत्री धामी ने उत्तराखंड की सदियों पुरानी और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर ‘हुड़किया बौल’ के ज़रिए भूमि, जल और मेघ (बादल) के देवताओं की पारंपरिक वंदना भी की। ‘हुड़किया बौल’ उत्तराखंड का एक अनूठा कृषि-लोकगीत और नृत्य रूप है, जो विशेष रूप से बुवाई के मौसम में अच्छी फ़सल और पर्याप्त बारिश के लिए देवताओं का आह्वान करने हेतु गाया जाता है। इस अनुष्ठान ने कार्यक्रम में उपस्थित क्षेत्रीय जनता को गहराई से छुआ और मुख्यमंत्री के सांस्कृतिक जुड़ाव को और भी मज़बूत किया।
मुख्यमंत्री का यह कदम न केवल पहाड़ी संस्कृति के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और पारंपरिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। उनकी धान रोपाई की यह तस्वीर और ‘हुड़किया बौल’ की प्रस्तुति, उत्तराखंड के कृषि समुदाय में एक नया उत्साह और उम्मीद जगा रही है, जो ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भर किसान की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है।
यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि उत्तराखंड सरकार किसानों के हित और राज्य की कृषि पहचान को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है, और स्वयं मुख्यमंत्री इस दिशा में एक प्रेरणा बनकर सामने आए हैं।